ये 12 रक्षक न होते तो नष्ट हो जाता प्रयागराज! महाकुंभ-2025 में जरूर करें इन माधव मंदिरों के दर्शन
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज महाकुंभ-2025 के आयोजन के लिए तैयार है. गंगा-यमुना और प्राचीन अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर होने वाला यह अध्यात्मिक आयोजन न सिर्फ युगों-युगों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन है, बल्कि यह आस्था के जरिए एकता के ध्येय को स्थापित करने का लक्ष्य भी है. जहां गंगा-यमुना की बहती अविरल धारा में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब और बड़े-छोटे की भावना का विष दूर बह जाता है और इस निर्मल जल से साफ हुए तन-मन में रह जाता है वो अमृत, जो हमें बताता है कि हम सब एक हैं और एक ही ईश्वर की संतान हैं. इस धारणा से ईशोपनिषद की वह सूक्ति सिद्ध हो जाती है, जिसमें कहा गया है कि, ईश्वर का निवास हर जगह और हर किसी में है. हर प्राणी और चेतना उसकी अविभाजित होने वाला हिस्सा है.
‘ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्,
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्.’
कुंभ में जीवंत हो उठती हैं प्राचीन परंपराएं
प्रयागराज, जो सदियों से आध्यात्मिकता और धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है, यहां कुंभ मेले के दौरान प्राचीन परंपराएं जो लुप्त हो गई थीं, या समय के फेर में भुला दी जाती हैं, वह भी जीवंत हो उठती हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है द्वादश माधव परिक्रमा, जो कुंभ मेले के दौरान धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.